हर घड़ी जलता हू मैं पर मगर चलता हू मैं
हर घड़ी जलता हू मैं पर मगर चलता हू मैं
रुक नहीं सकता हू मैं, थम नही सकता हू मैं ,
पग हैं मेरे अंगारों पर हँस नहीं सकता हु मैं,
और उन अंगारों कि गर्मी दहकती है तन बदन में,
हर घडी जलता हू मैं ....
सांस तक रुक गई है मंज़िल कि आस मे,
पर मगर दूर है वो जिसकी हु तलाश में,
हर पल तड़पता हु अपनी ही खविशों में,
पर नही मिलता मुझे जिसे ढूढ़ता हु मैं,
हर घडी जलता हू मैं ....
है कश्मकश दिल में कहीं, और रूह भी है मुश्किलों में,
पर जिद है, जस्बा है, भरोसा है खुद में,
इस लिए जलता हु मैं,
हाँ इसिलिए जलता हु मैं ....
नागेश कुमार दुबे
गौरवांवित भारतीय
nageshdubey.blogspot.com